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Banarasi Saree : जैसा की आप को इसके नाम से ही पता चल रहा है की यहाँ बात दुनिया की सबसे पुराने शहर बनारस की सबसे प्रसिद्ध साड़ी बनारसी साड़ीकी हो रही है। बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार कीसाड़ी है जिसे सादी विवाह के शुभ अवसरों परहिन्दू स्त्रियाँ पहना करती हैं। यह माना जा सकता है कि यह वस्त्र कला भारत में मुगल बाद्शाहों के आगमन के साथ ही आई।

बनारसी साड़ियाँ हिंदू समाज में सुहाग का प्रतीक मानी जाती हैं। हिंदू समाज में बनारसी साड़ी का महत्व चूड़ी और सिंदूर के समान माना जाता है। उत्तर भारत की विवाहित और सधवा स्त्रियाँ विवाह के शुभ अवसर पर मिली इन साड़ियों को बड़े ही जतन से संभालकर रखती हैं। इतना ही नहीं केवल ख़ास-शुभ अवसरों पर ही स्त्रियाँ बनारसी साड़ियों को पहनती हैं। बनारस की काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव का पवित्र मंदिर और बनारसी साड़ी दोनों ही बनारस की पवित्रता और सादगी का बखान करती है।

बनारस मेंरेशमकी साड़ियों पर बुनाई के समयज़रीके डिजाइन को मिलाकर बुनने से जो सुंदर रेशमी साड़ी बनती है उस साड़ी कोबनारसी रेशमी साड़ीकहते हैं।

अब आपके मन में यह सवाल जरूर उफान मार रहा होगा की आखिर ये बनारसी साड़ी साड़ियां बनती कहा है ?

Banarasi Saree banti kahan hai ?

जैसा की नाम से पता चल रहा है की बनारसी साड़ी है तो बनारस में ही बनती होगी। ये बात सही है ये मुख्य रूप से बनारस में बनती है। बनारस का आधुनिक नाम वाराणसी है। वाराणसी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर और जिला है। Banarasi Saree बनारस में ही नहीं बल्कि आस पास के सटे जिला जैसेचंदौली, आजमगढ़, जौनपुर और मिर्जापुर जिले में भी बनाई जाती हैं। हम आप को बता दे की Banarasi Sari के लिए कच्चा माल बनारस से आता है। पहले बनारस की अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ बनारसी साड़ी का काम था पर अब यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति में आ खाड़ी हुई है।

बनारसी साड़ी के बारे जाने के बाद और ये कहाँ कहाँ बनती है जानने के बाद आप का मन जरूर कर रहा होगा की बनारसी साड़ी कितने प्रकार की होती है ?

बनारसी साड़ी कितने प्रकार की होती है ? How many types of banarasi saree?

इस समय में चार तरह की बनारसी साड़ियां मिलती हैं।

1. प्योर सिल्क : इस साड़ी को काटन भी कहते हैं।

2. कोरा : कोरा यानी ऑरगेंजा। इसपर जरी और रेशम के धागों का काम होता है।

3. जॉर्जेट

4. शात्तिर

हम आप को बता दे की सबसे मशहूर से प्योर सिल्क बनारसी साड़ी है। डिजाइन की बात करे तो कुछ चीजें बड़ी मशहूर हैं। जैसे जमदानी, जंगला, तानचोई, वासकट, कटवर्क, टिशू और बूटीदार। ये बस डिजाइन की कैटगरी है। किस धागे से साड़ी बनी है, इससे इस कैटगरी का लेना-देना नहीं है। हर डिजाइन का रूप-रंग अलग होता है।

Design Of Banarasi Sari: बनारसी साड़ी की डिज़ाइन

अगर आप कपड़े की दुकान में रखी बनारसी साड़ी की पहचान करना चाहते है तो आप इसके अलग तरह से बनाए डिजाइन से कर सकते है। किसी भी बनारसी साड़ी में जो डिजाइन दिखाई देते हैं वो ये है : बूटी , बूटा , बेल , जाल और जगला और झालर।

बूटी ( Buti ): छोटे-छोटे तस्वीरों की आकृति को बूटी कहते है। इसके अलग-अलग पैटर्न दो या तीन रंगो के धागे की सहायता से बनाये जाते हैं और यदि पाँच रंग के धागों का प्रयोग किया जाता है तो इसे पचरंगा ( Pachranga) या जामेवार ( Jamewar ) कहा जाता है।हम आप को बता दे की बूटी बनारसी साड़ी की प्रमुख्य डिजाइनों में से एक है। इससे साड़ी की जमीन या मुख्य भाग को सुसज्जित किया जाता है। पहले रंग को ‘हुनर का रंग ‘ कहा जाता है।

बूटा ( Buta ): जब बूटी की आकृति को बड़ा कर दिया जाता है तो इस बढ़ी हुई आकृति को बूटा कहा जाता है। कभी-कभी साड़ी के किनारे में एक खास प्रकार के बूटे को काढ़ा जाता है, जिसे यहाँ के लोग अपनी भाषा में कोनिया कहते हैं।

बेल ( Bel ): धारीदार फूल और ज्यामितीय आकृति से बने डिजाइन को बेल कहा जाता है। इसके अलावा पंक्तिबद्ध बूटी या बूटे को भी बेल कहा जाता है। यह एक आरी या धारीदार फूल पत्तियों या ज्यामितीय ढंग से सजाए गए डिज़ाइन होते हैं।

जाल और जंगला ( Jaal and Jangala ): जाल, जैसे नाम से ही स्पष्ट होता है जाल के आकृति लिए हुए होते हैं। ताने-बाने से बनी आधारभूत डिजाइन को जाल कहा जाता है। इस जाल के अंदर विभिन्न प्रकार के डिजाइन तैयार किए जाते हैं।

झालर ( jhalar ):साड़ी के बॉर्डर को सजाने के लिए जिस डिजाइन को तैयार किया जाता है उसे झालर कहा जाता है।

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Vinay Kumar

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