ताजमहल की इस ख़ूबी को नयी पीढ़ी में कुछ ही लोग जानते है क्या आप को पता है ?

ताजमहल भारत के आगरा शहर में यमुना नदी के तट पर स्थित एक विश्व धरोहर मक़बरा है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था।

दुनिया भर के अनेक देशों से सैलानी इसे देखने के लिए भारत आते है।शाहजहां द्वारा बनवाई गयी यह दुनिया की सबसे खूबसूरत कला कृति है।

ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का सबसे उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् 1983 में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली,अतिउत्तम मानवीय कृतियों में से एक बताया गया।

ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। साधारणतया देखे गये संगमरमर की सिल्लियों की बडी- बडी पर्तो से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमरमर से ढंका है।

केन्द्र में बना मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि यह पूर्णतया सममितीय है। इसका निर्माण सन् 1648 के लगभग पूर्ण हुआ था।उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान रूपांकनकर्ता माना जाता है।

ताजमहल के पूरा होने के तुरंत बाद ही, शाहजहाँ को अपने पुत्र औरंगजे़ब द्वारा अपदस्थ कर, आगरा के किले में नज़रबन्द कर दिया गया। शाहजहाँ की मृत्यु के बाद, उसे उसकी पत्नी के बराबर में दफना दिया गया था। अंतिम 19वीं सदी होते होते ताजमहल की हालत काफी जीर्ण-शीर्ण हो चली थी।

1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ताजमहल को ब्रिटिश सैनिकों एवं सरकारी अधिकारियों द्वारा काफी विरुपण सहना पडा़ था। इन्होंने बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न, तथा लैपिज़ लजू़ली को खोद कर दीवारों से निकाल लिया था।

इसी समय यहाँ के बागों को ब्रिटिश शैली में बदला गया था। सन् 1942 में, सरकार ने मकबरे के इर्द्-गिर्द, एक मचान सहित पैड़ बल्ली का सुरक्षा कवच तैयार कराया था। यह जर्मन एवं बाद में जापानी हवाई हमले से सुरक्षा प्रदान कर पाए। 1965 एवं 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय भी यही किया गया था, जिससे कि वायु बमवर्षकों को भ्रमित किया जा सके।


इसके वर्तमान खतरे वातावरण के प्रदूषण से हैं, जो कि यमुना नदी के तट पर है, एवं अम्ल-वर्षा से, जो कि मथुरा तेल शोधक कारखाने से निकले धुंए के कारण है। इसका सर्वोच्च न्यायालय के निदेशानुसार भी कडा़ विरोध हुआ था।

ताजमहल आगरा नगर के दक्षिण छोर पर एक छोटे भूमि पठार पर बनाया गया था। शाहजहाँ ने इसके बदले जयपुर के महाराजा जयसिंह को आगरा शहर के मध्य एक वृहत महल दिया था।

ताजमहल को बनाने के लिए लगभग तीन एकड़ के क्षेत्र को खोदा गया, एवं उसमें कूडा़ कर्कट भर कर उसे नदी सतह से पचास मीटर ऊँचा बनाया गया, जिससे कि सीलन आदि से बचाव हो पाए।

मकबरे के क्षेत्र में, पचास कुँए खोद कर कंकड़-पत्थरों से भरकर नींव स्थान बनाया गया। फिर एक बहुत बडा़ ईंटों का, मकबरे समान ही ढाँचा बनाया गया। यह ढाँचा इतना बडा़ था, कि अभियाँत्रिकों के अनुमान से उसे हटाने में ही सालों लग जाते।

इसका समाधान यह निकाला गया, कि शाहजाहाँ के आदेशानुसार स्थानीय किसानों को खुली छूट दी गई कि एक दिन में कोई भी चाहे जितनी ईंटें उठाकर ले जा सकता है और वह ढाँचा रात भर में ही साफ हो गया।

सारी निर्माण सामग्री एवं संगमर्मर को नियत स्थान पर पहुँचाने हेतु, एक पंद्रह किलोमीटर लम्बा मिट्टी का ढाल बनाया गया। बीस से तीस बैलों को खास निर्मित गाडियों में जोतकर शिलाखण्डों को यहाँ लाया गया था।

एक विस्तृत पैड़ एवं बल्ली से बनी, चरखी चलाने की प्रणाली बनाई गई, जिससे कि खण्डों पत्थरों को इच्छित स्थानों पर पहुँचाया गया। नदी से पानी लाने हेतु रहट प्रणाली का प्रयोग किया गया था। उससे पानी ऊपर बने बडे़ टैंक में भरा जाता था। फिर यह तीन गौण टैंकों में भरा जाता था, जहाँ से यह पाइपों द्वारा स्थानों पर पहुँचाया जाता था।

आधारशिला एवं मकबरे को निर्मित होने में बारह साल लगे। शेष इमारतों एवं भागों को अगले दस वर्षों में पूर्ण किया गया। इनमें पहले मीनारें, फिर मस्जिद, फिर अंत में मुख्य द्वार बने।

क्योंकि यह समूह, कई अवस्थाओं में बना, इसलिये इसकी निर्माण-समाप्ति तिथि में कई भिन्नताएं हैं। यह इसलिये है, क्योंकि पूर्णता के कई पृथक मत हैं। उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं।

इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है।यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए तो खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है।

ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। श्वेत संगमर्मर को राजस्थान से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से।तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन)लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे गए थे।

उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार,सीरिया एवं ईरान से सुलेखन(सुंदर लेखनी) कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं।