गायत्री माँ मंत्र - gayatri maa mantra

Gayatri Jayanti

जाने कब है गायत्री जयंती और क्या है गायत्री माता की महिमा

Gayatri Jayanti 30 may 2023 दिन Wednesday / बुधवार को है और इसका शुभ मुहूर्त Modern Clock के अनुसार   :

Ekadashi Tithi start – 13:05 AM on may 30, 2023
Ekadashi Tithi Ends – 13:45 AM on may 31, 2023

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कौन हैं गायत्री माता ( Gayatri Mata )

चारों वेद ,शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पत्ति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता हैं,ब्रह्मा,विष्णु,और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें कहा ही माना जाता हैं इसलिए इन्हें देवमाता भी कहा जाता हैं। समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहा जाता हैं।इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता हैं।माँ पार्वती,सरस्वती,लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता हैं ।

कैसे हुआ गायत्री का विवाह

कहा जाता हैं कि एक बार भगवान ब्रह्मा यज्ञ मे शामिल होने जा रहे थे।मान्यता हैं कि यदि धार्मिक कार्यो मे पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता हैं लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्री मौजूद नहीं थी इस कारणवश उन्होंने यज्ञ मे शामिल होने के लिए वहाँ मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया।

कैसे हुआ गायत्री का अवतरण

माना जाता हैं कि सृष्टि के आदि मे ब्रह्मा जी पर गायत्री मत्रं प्रकट हुआ । माँ गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मत्रं की व्याख्या अपने चारो मुखों से चार वेदो के रुप मे कि ।आरम्भ मे गायत्री सिर्फ देवताओं तक सिमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ ने कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए उसी तरह विश्रवामित्र ने भी कठोर साधना कर माँ गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मत्रं को सर्वसाधारण तक पहुचाया।

कब मनायी जाती हैं गायत्री जयंती ( Gayatri Jayanti )

गायत्री जयंती के तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत सामने आते हैं।कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा औरगायत्री जयंती की तिथि एक सामान बताई जाती हैं तो कुछ इसे गंगा दशहरा से अगले दिन यानि ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते को मनाते हैं। वहीं श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती केउत्सव को मानाया जाता हैं। श्रावण पूणिमा के दिन गायत्री जयंती कोअधिक स्थानों पर स्वीकार किया जाता हैं, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी -एकादशी को मान्यतानुसार मनाई जाती हैं।

गायत्री माता की महिमा

गायत्री की महिमा मे प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारको तक अनेक बातें कहीं हैं,वेद ,शास्त्र और पुराण तो गायत्री माँ की महिमा गाते ही हैं। अर्थववेद मे माँ गायत्री को आयु,प्राण,शक्ति,कीर्ति,धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया हैं।

महाभारत के रचायिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री के महिमा मे कहते हैं जैसे फूलों मे शहद , दूध मे घी सार रूप मे होता हैं वैसे ही समस्त वेदो का हार गायत्री हो यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय)के समान हैं।जैसे गंगा शरीर के पापों को धोकर तन मन को निर्मल करती हैं उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती हैं।

गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुचाने वाले विश्रवामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनो वेदो का सार तीन चरण वाला गायत्री मत्रं निकाला हैं।गायत्री से बढ़ कर पवित्र करने वाला मत्रं और कोई नहीं हैं।जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता हैं वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता हैं जैसे केचुली से छुटने पर सापँ होता हैं।

गायत्री वह शक्ति केंद्र हैं जिसके अंतर्गत विश्र्व के सभी दैविक ,दैहिक,भौतिक छोटे बड़े शक्ति तत्व अपनी-अपनी क्षमता और सीमा के अनुसार संसार के विभिन्न कार्यो का सम्पादन करते हैं।इन्हीं का नाम देवता हैं।ये ईश्र्वरीय सन्ता के अंतर्गत उसी के अंश रुपी इकाइयां हैं जो सृष्टि संचालन के विशाल कार्यक्रम मे अपना कार्य भाग करते रहते हैं।जिस प्रकार एक शासन-तत्रं केअंतर्गत अनेकों अधिकारी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निबाहते हुए सरकार का कार्य सचांलन करते हैं,जिस प्रकार एक मशीन के अनेकों पुर्जे अपने-अपने स्थान पर अपने-अपने क्रिया कलापों कोजारी रखते हुए उस मशीन की प्रक्रिया सफल बनाते हैं ,उसी प्रकार यह देव तत्व भी सृष्टि व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की विधि व्यवस्था का सम्पादन करते हैं।

शारदा तिलक ने गायत्री के स्वरूप का परिभाषित करते हुए कहा गया है-गायत्री पंचमुखा हैं ,ये कमल पर विराजमान होकर रत्न -हार-आभूषण धारण करतीं हैं। इनके दस हाथ हैं,जिनमें शंख ,कमलयुग्म ,वरद ,अभय, अंकुश ,उज्जवलपात्र और रुद्राक्ष कि माला आदि हैं। पृथ्वी पर जो मेरु नामक शिखर हैं ,उसकी चोटी पर इनका निवास स्थान हैं।

दिव्य गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।।

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गायत्री उपासना से नारी मात्र के प्रति पवित्र भाव बढ़ते हैं और उसके प्रति श्रेष्ठ व्यवहार करने की इच्छा स्वभावतः होती हैं। ऐसी भावना वाले व्यक्ति नारी सम्मान के-नारी पूजा के -प्रबल समर्थक होते हैं। यह समर्थन समाज मे सुख शान्ति एंव प्रगति के लिए नितान्त आवश्यक हैं।